मजदूरों के पसीने की खुशबू से ही महकता है दुनिया का जर्रा जर्रा।
1 मई, मजदूर दिवस
आज तक विकास के नाम पर दुनिया में जितने भी काम हुए हैं या वैज्ञानिकों व अन्य आविष्कारकों द्वारा जो भी काम सोचे गए हैं उनको मूर्त रूप मजदूर वर्ग द्वारा ही दिया गया है,जो भी निर्माण हुआ है देश-दुनिया का वो कोना-कोना उसी मजदूर के पसीने की महक से ही महक रहा है।मजदूर वर्ग खुद तंगहाली में रहकर दुनिया के लिए बड़े-बड़े भवन बनाता है,कारखानों को संचालित करता है व मानवता के जीवन व जीवन यापन के लिए जरूरी सभी चीजों में प्रमुख व निर्णायक भूमिका निभाता है।एक समय था जब मजदूरों से असीमित समय के लिए काम करवाया जाता था,लंबे समय तक चले आंदोलन के चलते आखिरकार दुनिया भर में मजदूरों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत हुई,काम के घंटे निश्चित हुए व अन्य तरह की सुविधाएं मजदूरों को प्राप्त हुई लेकिन आज भी देश-दुनिया के कई हिस्सों में इस मेहनतकश वर्ग की स्थिति अच्छी नहीं है।पीढ़ी दर पीढ़ी जी तोड़ मेहनत के बाद भी इनकी आर्थिक स्थिति में पीढ़ियों से कोई बदलाव नहीं आया है हालांकि कई जगह शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी हुआ है लेकिन अपने सीमित संसाधनों की वजह से एक-आध अपवाद को छोड़कर मजदूर वर्ग में ऐसा कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आया है जो इनके पूरे जीवन की दिशा बदल दे। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले व अकुशल मजदूरों को भी नियमित रूप से रोजगार नहीं मिलता। शासन-प्रशासन को भी चाहिए कि वह गरीब और मजदूर को केंद्र में रखकर हर प्रकार की नीतियां बनाएं पूंजीपति वर्ग से भी अपील है कि मजदूर व उनके बच्चों के प्रति जिम्मेदारी व सम्मान का भाव रखें क्योंकि उनका कोई भी सपना या कार्य बिना मजदूरों के श्रम के पूरा नहीं हो सकता। विकसित भारत सहकारी समिति के माध्यम से हम लगातार मजदूरों की बेहतरी के लिए काम करने का और उन्हें जागरूक करने का संकल्प दोहराते हैं।
– नरषोतम मेजर,